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ईद पर भी हिंसा ?

***.......सीधी खरी बात.......***
***.......सीधी खरी बात.......***
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कश्मीर में जिस तरह से अलगाव वादी नेता अपने काम को अंजाम देने के लिए भोले भले लोगों का इस्तेमाल कर रहे हैं वह किसी भी तरह से उचित नहीं कहा जा सकता है. ऐसा नहीं है की कल ईद के दिन आम कश्मीरी इस ख़ुशी के त्यौहार को शांति के साथ नहीं मना सकता था पर जिस तरह से कुछ कह कर कुछ और करने की मंशा हमेशा से कुछ कश्मीरी नेताओं की रहती है उससे इस तरह की किसी भी घटना से कभी भी इंकार नहीं किया जा सकता है ? राज्य सरकार ने इस हिंसा की ज़िम्मेदारी मीर वायज़ उमर फारूक पर डाल दी है. उमर अब्दुल्लाह ने कहा कि हमने ईद पर शांति पूर्वक मार्च निकलने की अनुमति दी थी जिससे अगर कोई अपनी बात को रखना चाहता है तो रख सके पर इस अवसर का जिस तरह से अलगाववादियों ने दुरूपयोग किया वह सरकार और इनके बीच की खाई को और चौड़ा करने का काम ही करने वाला है.

एक ऐसा त्यौहार जिसमें मिठास की भरमार होनी चाहिए थी उस पर भी इन ओछे नेताओं ने खून के छींटें मार दिए ? मुसलामानों के सबसे बड़े त्यौहार पर उन परिवारों के बारे में सोचना चाहिए जिनके बच्चे इस तरह की नूराकुश्ती में घायल हो गए हैं ? पर कश्मीर में कुछ नेताओं को अब बिना खून खराबा देखे कुछ भी अच्छा नहीं लगता है ? यदि कल त्यौहार के दिन वे अपनी इस ख़ूनी योजना को रोक कर रखते तो कम से कम उन लोगों को फालतू का दर्द नहीं झेलना पड़ता जो कल हुई हिंसा में घायल हुए हैं. यहाँ पर राज्य सरकार के रुख को ग़लत नहीं कहा जा सकता है क्योंकि उसने तो सद्भाव के नाते इस तरह के आयोजन की अनुमति प्रदान कर दी थी फिर इस का जिस तरह से ग़लत उपयोग किया गया और लोगों को भड़काने के बाद कश्मीर की कसमें खाने वाले ये घटिया नेता अचानक गायब हो गए और आम जनों को जिन्हें उन्होंने केवल मार्च के लिए बुलाया था पुलिस से उलझा दिया ?

अब भी समय है कि आम कश्मीरी को यह समझना ही होगा कि नेताओं के साथ रहने से उनका नुकसान ही होने वाला है ? अच्छा हो कि सामाजिक सरोकार से ताल्लुक रखने वाले आम कश्मीरियों को बात चीत की मुख्य धारा में शामिल किया जाए जिससे केवल राजनैतिक रोटी सेंकने वाले और कश्मीर के बहाने अपना उल्लू सीधा करने वाले नेताओं के मकडजाल से कश्मीर को बाहर निकाला जा सके और आम कश्मीरी के दर्द को समझ कर उसका सही ढंग से इलाज किया जा सके.

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