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अपमान और राजनीति

***.......सीधी खरी बात.......***
***.......सीधी खरी बात.......***
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उत्तर प्रदेश में जिस तरह से हिन्दू दर्शन और देवी देवताओं पर कथित अभद्र टिप्पणी करने के कारण ४ वरिष्ठ मंत्रियों समेत पत्रिका के संपादक मंडल को कोर्ट का नोटिस मिला है जिस कारण एक बार फिर से अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का मामला सामने आ गया है ? आख़िर कैसे यह तय किया जाये कि कहाँ पर अभिव्यक्ति है और कहाँ पर विद्वेष पूर्वक बातें की जा रही हैं ? क्या सर्वजन की सरकार होने का दावा करने वाली उ० प्र० सरकार किसी दलित महापुरुष के ख़िलाफ़ इस तरह का मामला सामने आने पर भी कोर्ट के फैसले का इंतजार करती ? मतभेद तो कहीं भी हो सकते हैं पर इस तरह का मनभेद इस सरकार ने हमेशा से ही प्रदर्शित किया है.

यह सही है कि जब किसी की भी धार्मिक भावनाओं को भड़काने के खिलाफ़ देश में कानून है पर जब इस तरह से सरकारी सहयोग के कारण जब सत्ता का दुरूपयोग कर लोगों को दर्शन और देवी देवताओं के खिलाफ़ लिखकर बताया जाता है तो कौन सा कानून बचता है ? कई साल पहले एक फिल्म में जाति सूचक शब्द होने पर सरकार को बड़ी आपत्ति थी और उस गाने में से जाति सूचक शब्द निकाल दिए गए थे ? फिर इसी सरकार ने भाईचारा बढ़ने के नाम पर जातीय सम्मलेन करने शुरू किये ? जब जाति से इतना ही परहेज़ था तो फिर से क्यों जातियों का झमेला पाला गया ?

आज किसी की नज़रों में चढ़ जाने का सबसे अच्छा तरीका यही है कि किसी भी तरह के विवाद को हवा देकर आगे बढ़ जाया जाये. बस कुछ अति महत्वकांक्षी लोग इस छोटे मार्ग को पकड़ लेते हैं क्योंकि उनमें उतना संघर्ष करने का दम ही नहीं होता जो उन्हें आगे ले जा सके ? पिछले चुनाव में अभिनेता संजय दत्त द्वारा माया को जादू की झप्पी देने का मामला अभी भी कोर्ट में चल रहा है और इस तरह से खुलेआम कुछ भी कहने वालों के खिलाफ़ सरकार कुछ भी करना ही नहीं चाहती है ? फिलहाल केवल उ० प्र० सरकार ही नहीं वरन सभी सरकारों को इस बात पर अब ध्यान देना ही होगा कि कहीं से भी किसी भी तरह की अभद्र बातें करने और लोगों की भावनाएं भड़काने वालों के खिलाफ़ समय रहते ही ठोस कार्यवाही की जाये जिससे लोग इस तरह से मनमानी न कर सकें.

मेरी हर धड़कन भारत के लिए है…

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