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उत्तर प्रदेश में बिजली संकट

***.......सीधी खरी बात.......***
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नेताओं के झूठ बोलने की प्रवृत्ति के आगे लगता है पूरा उत्तर प्रदेश बेबस है… ऐसा नहीं है कि पूरे देश में बिजली जैसी मूलभूत आवश्यकता पूरी हो रही हो पर जिस तरह से उत्तर प्रदेश में बुरा हाल चल रहा है वह नागरिकों के मौलिक अधिकारों का सीधा उल्लंघन है. आज पूरे सूबे में कोई भी ऐसी जगह नहीं है जहाँ पर घोषित समय सारिणी के अनुसार बिजली दी जा रही हो ? झूठ बोलने के लिए नेता तो शुरू से ही कुख्यात रहे हैं पर अब अपने नेताओं की चरण वंदना और अपनी कुर्सी बचाने के लिए प्रदेश के आला नौकरशाह भी हद दर्जे के झूठ बोलने लगे हैं. आज जब पूरे प्रदेश में बिजली का घोर संकट है तो किस योजना के तहत सरकार शहरों में ऊंची ऊंची लाइट लगाने की अनुमति दे देती है ? जबकि सरकार जानती है कि उसके पास इस संकट से निपटने केलिए अगले २० सालों में कोई समाधान नहीं है तो क्यों वह इस तरह के बिजली खाने वाली योजनाओं पर जनता का धन बहाने पर लगी हुई है ? अच्छा हो कि इन सबके स्थान पर केवल सौर ऊर्जा चालित लाइट ही लगाने की अनुमति दी जाये और पूरे प्रदेश में सरकारी स्तर पर इनकी खरीद को पूरी तरह से प्रतिबंधित कर दिया जाना चाहिए. पर जो भ्रष्टाचार करने का अवसर इन लाइट्स में होता है वह सौर ऊर्जा वालों में नहीं है क्योंकि सौर ऊर्जा वाली लाइट्स पूरा पैसा देने के बाद ही मिल पाती हैं और उनमें किसी भी तरह के कमीशन का भी कोई जुगाड़ नहीं होता है ? जबकि देश की नामी गिरामी कम्पनियाँ अपनी बड़ी बड़ी लाइट्स बेचने के बदले में अधिकारियों और नेताओं की जेबें भर देती हैं ?

देश में जो ऊर्जा संकट चल रहा है उससे निपटने के लिए ठोस कार्य योजना की आवश्यकता है जो बना पाना अब किसी सरकार के बूते में नहीं दीखता क्योंकि सब अपने ५ साल पूरे करने में ही लगे हुए हैं किसी को अगली बार सरकार बनने की उम्मीद भी नहीं होती और उनके भ्रष्ट कारनामों से जनता भी उन्हें लगातार पद पर नहीं देखना चाहती है. आंकड़ों पर नज़र डाली जाये तो पिछले बीस वर्षों में कांग्रेस की सरकार जाने के बाद उत्तर प्रदेश में कितनी ऊर्जा को और जोड़ा गया है ? विकास के दावे करने वाली भाजपा सरकार ने प्रदेश के बिजली के बिल चुकाने के स्थान पर बिजली घर ही एन टी पी सी को बेच डाले. सपा ने केवल २०१२ में संकट दूर करने की बाते की क्योंकि उनको पता था कि तब वे जवाब देने के लिए सरकार में ही नहीं होंगें. अब यही रवैया बसपा सरकार अपना रही है क्योंकि लगता है कि उन्हें भी पता चल गया है कि उनकी पारी भी २०१२ में समाप्त हो ही जाएगी इसलिए वे बिजली संकट २०१३ में दूर करने की बातें करने लगे हैं ? जब हम होंगें ही नहीं तो जो होगा उसे ४ गलियाँ निकालेंगें और कह देंगें कि हम होते तो बिजली संकट दूर हो गया होता ? विकास और स्वाभिमान के नाम पर जितना ऊर्जा दुरूपयोग प्रदेश की वर्तमान सरकार कर रही है उसे देखकर बाबा साहब की आत्मा को बहुत कष्ट होता होगा. उन्होंने दलितों के उत्थान के लिए सादगी से जीवन जीना जिया और अब उनके नाम पर गरीब की कुटिया के हिस्से की बिजली उनके ही नाम पर बनाये गए स्मारकों में बर्बाद की जा रही है. किसी महापुरुष के नाम पर कुछ भी बनाने का कोई विरोध नहीं है आख़िर भारत के महापुरुषों के स्मारक देश में नहीं तो क्या विदेश में बनाये जायेंगे ? पर जिस तरह की बर्बादी इन जगहों पर की जा रही है उसका निश्चित तौर पर पूरा विरोध किया ही जाना चाहिए ? इस स्थानों पर सरकार चाहे तो पूरी तरह से सौर ऊर्जा का प्रयोग कर सकती है पर जब सरकारों की नज़रें इतनी कमज़ोर हो जाती हैं कि उन्हें कुछ भी दिखाई नहीं देता ? फिलहाल मुझे भी पता है कि मेरे कुछ भी लिखने से कुछ नहीं होने वाला पर कम से कम मैं अपना नाम उन लोगों में नहीं देखना चाहता जो जानकर भी अनजान बन जाते हैं मैं कुछ भी नहीं कर सकता पर अपनी बात को सबके सामने रखने का प्रयास तो कर ही सकता हूँ ?

मेरी हर धड़कन भारत के लिए है…

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