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२०१०-११ के बजट में आम आदमी या इस तरह से कहा जाये कि वेतनभोगियो के लिए आयकर ने एक बड़ी राहत दी है तो ठीक ही होगा. अभी तक देश में विभिन्न करों की दरें पूरी तरह से तर्क संगत नहीं बनायीं जा सकी हैं जिसके चलते लोग पूरी ईमानदारी से टैक्स नहीं देना चाहते हैं. अब भी समय है कि देश में मंहगाई और आय के अन्य स्रोतों पर विचार करके आयकर को इतना सरल किया जाये कि आम आदमी देश के लिए कर देने में आना कानी नहीं करे. कर निर्धारण की प्रक्रिया इतनी सरल होनी चाहिए कि कोई भी आसानी से यह कर सके. आज बहुत सरे झमेलों में पड़ने के चक्कर केकारण ही बहुत से लोग कर नहीं देते हैं कि कौन इस लफड़े में फंसे ?
यह सही है कि देश कि ८० % जनता किसी भी तरह से कोई कर चुराना नहीं चाहती है पर दरोगा राज और कानूनी पेचीदगियों के चलते कुछ ऐसा हो जाता है कि वह कर देने की तरफ आना ही नहीं चाहती है. कानून इतना सरल और पारदर्शी होना चाहिए कि कोई भी आसानी से कर दे सके. कर निर्धारण करने वाले तंत्र में व्याप्त भ्रष्टाचार ने भी देश में कर चोरी को बहुत बढ़ावा दिया है. सबसे पहले इस बात पर विचार किया जाना चाहिए कि यदि कोई अपनी स्वेच्छा से कर देना चाहता है तो उसके पास यह विकल्प होना चाहिए कि बिना किसी बड़े झमेले के वो आयकर विभाग के खाते में केवल अपना नाम और पता भर कर कर जमा कर सके. इससे सबसे बड़ी बात तो यह होगी कि नए करदाता सामने आयेंगें और जब वे एक बार कर देंगें तो आगे उनको और अधिक और सही कर देने के लिए प्रेरित किया जा सकता है.
देश में कानून की कमियों को ढूंढ कर उनका फायदा उठाने की बात करने वाले कितने लोग होंगे ? बाकी सभी को इन विभागों से जुड़े लोग यह समझाने में केवल इसलिए सफल हो जाते हैं क्योंकि नियमों की पेचीदगियां उन्हें कुछ करने नहीं देती हैं. यह बात पूरे विश्वास केसाथ कही जा सकती है कि यदि सरकारें भ्रष्टाचार पर नकेल लगा सकें तो इस देश के नागरिक हमेशा की तरह स्वेच्छा से सही कर देने के लिए taiyar हैं. क्या देश पर चीन,पाक युद्ध कल्गिल सुनामी और अन्य आपदाएं आने पर आम आदमी नेआगे आकर अपना योगदान नहीं दिया है ? क्यों कर लेने वाले कर दाताओं को केवल कर चोरी करने वाला ही समझते हैं ? अब भी समय है कि देश में यह तंत्र मज़बूत किया जाये और तब देखा जाये कि जनता क्या कर सकती है ?
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है…
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