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कहा जाता है कि भारत में दो ही चीज़ें हैं जो पूरे देश को जोड़ कर रखती हैं रेल और क्रिकेट ! कल का दिन दोनों का ही था इन दोनों मसलों पर सारा देश सब कुछ भूल सा जाता है. रेल जहाँ हमारी आवश्यकता है वहीं क्रिकेट हमारी दीवानगी…. कल पूरे दिन ही दोनों ने खूब धमाल किया. सुबह से समाचारों में रेल थी तो सचिन की बुलेट ट्रेन चलने के बाद रेल की ख़बरें पीछे होती चली गयी. ठीक है कि खेल होने चाहिए खेलों से विकास होता है, सद्भाव बढ़ता है और भी बहुत सारी बातें खेलों को लेकर कही जाती हैं…. पर क्या इतने के बाद भी यह कहा जा सकता है कि जिस तरह से भारत में क्रिकेट को लिया जाता है वह दीवानगी से भी बहुत ज्यादा है ?
यह सही है कि देश में क्रिकेट का यही समय है फिर बहुत गर्मी और बरसात में खेला ही नहीं जा सकता है पर जब पूरा भारत अपने बच्चों के भविष्य के बारे में चिंतित होता है कि पता नहीं उनके बच्चों की परीक्षाएं कैसी जायेंगीं ठीक उसी समय बच्चों के दिमाग में क्रिकेट भी चल पड़ता है. अब जब देश में ही खेल हो रहे हैं तो उसे आखिर कब तक बचा जा सकता है ? सारी जगहों पर केवल क्रिकेट की ही चर्चा हो तो बच्चों का ध्यान किस तरह से अपनी पढाई में लग सकता है ?
यह सही है कि देश में सभी को अपनी बातें कहने और करने का हक है पर क्या खेल के चक्कर में बच्चों के भविष्य को इस तरह से दांव पर लगाया जाना चाहिए ? आज भी परीक्षा के समय पर इतना ज्यादा क्रिकेट कहीं न कहीं से बच्चों के भविष्य पर प्रभाव तो डालता ही है . अब भी समय है कि इन आयोजनों के समय के बारे में फिर से विचार किया जाना चाहिए. पहले इतने साधन नहीं थे और न ही इतना ज्यादा क्रिकेट होता था तो पढाई में कम व्यवधान आता था पर आज हर जगह सबके पास सारे संसाधन उपलब्ध हैं तो कोई भी हर समय इससे जुडा हुआ है. आज जब देश में क्रिकेट को लेकर खुशी है तो ही सही समय है इस पर विचार करने के लिए क्योंकि जब टीम का प्रदर्शन खराब हो जाता है तो जो आज चरण वंदना में लगे हुए हैं गाली देने में बिलकुल भी नहीं चूकते हैं…..
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